संस्थान का इतिहास
उत्पत्ति
भारत सरकार की उच्चाधिकार प्राप्त समिति जिसके अध्यक्ष एक व्यवसायी, शिक्षाविद्, उद्योगपति और सार्वजनिक व्यक्तित्व सर नलिनी रंजन सरकार थे, उन्होंने ने 1946 में देश में तकनीकी शिक्षा के विकास के लिए दिशा निर्धारित करने हेतु यूरोप और संयुक्त राज्य में उनके प्रतिरूप समान श्रेणी के चार उच्च प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना की सिफारिश की । समिति ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों की स्थापना की सिफारिश की थी । सबसे प्रथम भा.प्रौ.सं की स्थापना 1950 में पश्चिम बंगाल राज्य में खड़गपुर (इसकी प्रसिद्धि का एक अन्य कारण है यहां पर विश्व का सबसे लम्बा प्लेटफार्म होना) में हिजली गाँव में जो डिटेंशन कैम्प हुआ करता था, उस स्थान पर किया गया । इसके बाद शीघ्र ही चार और भा.प्रौ.सं. ही स्थापित किए गए । भा.प्रौ.सं. मुंबई 1958 में स्थापित किया गया और इसके बाद मद्रास (1959), कानपुर (1959) और दिल्ली (1961) के संस्थान स्थापित हुए । यद्यपि बॉम्बे और मद्रास शहरों के नाम बाद में परिवर्तित होकर, क्रमश: मुंबई और चेन्नै हो गया, परंतु अंग्रेजी में लिखे जाने इन दोनों स्थानों के संस्थानों के नाम वैसे ही रहें । इसलिए हमारा संस्थान आई आई टी बॉम्बे है, और अक्सर संक्षेप में आई आई टी बी कहा जाता है। हिंदी में इसका नामकरण पहले से ही भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई है।
यह संस्थान इस प्रकार से अभिकल्पित किया गया है कि विस्तारशील ज्ञान और आधुनिक समाज की परिवर्तनशील सामाजिक-आर्थिक आवश्यकताओं पर केन्द्रीत संगठन की आवश्यक गतिशीलता एवं अनुकूलशीलता प्रदान किया जा सके । मुंबई में संस्थान स्थापना की योजना 1957 में आरम्भ हुई और 100 विद्यार्थियों के प्रथम बैच को 1958 में प्रवेश दिया गया था । पवई में स्थित संस्थान परिसर 200 हेक्टर में फैला हुआ है और यह संस्थान एक ओर प्रकृति मनोहर विहार झील तथा पवई झील से घिरा हुआ है तथा दूसरी ओर इसके आस-पास हरियाली पहाडियॉं हैं । वर्ष 1961 में संसद अधिनियम द्वारा संस्थान को राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया और इसे अपनी निजी उपाधियॉं और डिप्लोमा प्रदान करने का अधिकार देते हुए विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया गया । भा.प्रौ. सं. मुंबई की स्थापना उस समय की यूएसएसआर सरकार के योगदान का उपयोग करते हुए यूनेस्को के सहभागिता सहयोग एवं भागीदारी से हुई । संस्थान ने 1956 से 1973 तक यूनेस्को के माध्यम से यूएसएसआर से उपकरण और विशेषज्ञ सेवाओं के रूप में पर्याप्त सहायता प्राप्त की । इसने यूएसएसआर के कई प्रतिष्ठित संस्थानों से 59 विशेषज्ञ और 14 तकनीशियन सम्मिलित किए । यूनेस्को ने यूएसएसआर में भारतीय संकाय सदस्यों के प्रशिक्षण के लिए 27 अध्येतावृत्तियां भी दी । 1965 के द्विपक्षीय करार के अंतर्गत, यूएसएसआर सरकार ने यूनेस्को के माध्यम से संस्थान द्वारा पहले ही प्राप्त सहायता कार्यक्रम को पूरा करने के लिए अतिरिक्त सहयोग प्रदान किया गया ।